ओडिशा के प्रमुख पर्यटन स्थल और उसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी | (Major tourist places of Odisha and complete information about them.)

Aditya
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भुवनेश्वर ओड़िशा का सबसे बड़ा नगर तथा पूर्वी भारत का आर्थिक एवं सांस्कृतिक केन्द्र है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह नगर अत्यन्त महत्वपूर्ण है। तीसरी शताब्‍दी ईसा पूर्व में यहीं प्रसिद्ध कलिंग युद्ध हुआ था। इसी युद्ध के परिणामस्‍वरुप अशोक एक लड़ाकू योद्धा से प्रसिद्ध बौद्ध अनुयायी के रूप में परिणत हो गया था। भुवनेश्वर को भारत का मंदिर शहर कहा जाता है क्योंकि यहाँ 500 से ज़्यादा मंदिर हैं! इस शहर की सांस्कृतिक विरासत बहुत समृद्ध है और माना जाता है कि यहाँ 6वीं और 11वीं सदी के मंदिर हैं।

 


जगन्नाथ पुरी को धरती का वैकुंठ कहा गया है। इस स्थान को शाकक्षेत्र, नीलांचल और नीलगिरि भी कहते हैं। अनेकों पुराणों के अनुसार पुरी में भगवान कृष्ण ने अनेकों लीलाएं की थीं और नीलमाधव के रूप में यहां अवतरित हुए। उड़ीसा स्थित यह धाम भी द्वारका की तरह ही समुद्र तट पर स्थित है।

पुरी का जगन्नाथ धाम चार धामों में से एक है। यहां भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं। हिन्दुओं की प्राचीन और पवित्र 7 नगरियों में पुरी उड़ीसा राज्य के समुद्री तट पर बसा है। जगन्नाथ मंदिर विष्णु के 8वें अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है।

 

 

कोणार्क सूर्य-मन्दिर (Konark Sun Temple) का निर्माण लाल रंग के बलुआ पत्थरों तथा काले ग्रेनाइट के पत्थरों से हुआ है। इसे 1236-1264 ईसा पूर्व गंग वंश के तत्कालीन सामंत राजा नृसिंहदेव द्वारा बनवाया गया था। यह मन्दिर, भारत के सबसे प्रसिद्ध स्थलों में से एक है। इसे युनेस्को द्वारा सन् 1984 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है।

बंगाल की खाड़ी के तट पर, सूर्य की कृपा से, कोणार्क का सूर्य मंदिर सूर्य देवता के रथ का स्मारक प्रतिनिधि है। इसमें 24 प्राचीन चित्र शामिल हैं, जिनमें 6 घोड़ों का समूह है। 13वीं शताब्दी में निर्मित, यह भारत के सबसे प्रसिद्ध ब्राह्मण पूजा स्थलों में से एक है।

 

 

उदयगिरि और खंडगिरि की गुफाएं

उदयगिरि की गुफाएं लगभग 135 फुट और खंडगिरि की गुफाएं 118 फुट ऊंची हैं। ये गुफाएं ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी की हैं। ये गुफाएं ओडीशा क्षेत्र में बौद्ध धर्म और जैन धर्म के प्रभाव को दर्शाती हैं। ये पहाड़ियां गुफाओं से आच्छादित हैं, जहां जैन साधुओं के जीवन और काल से संबंधित वास्तुकला कृतियां हैं।

उदयगिरि का अर्थ है "सूर्योदय पहाड़ी" और इसमें 18 गुफाएँ हैं जबकि खंडगिरि में 15 गुफाएँ हैं। उदयगिरि और खंडगिरि की गुफाएँ, जिन्हें शिलालेखों में लेना या लेना कहा जाता है, इन्हें ज्यादातर जैन तपस्वियों के निवास के लिए खारवेल के शासनकाल के दौरान बनाया गया था।

 


भीतरकनिका राष्ट्रीय उद्यान (Bhitarkanika National Park) 

भारत के ओड़िशा राज्य के केन्द्रापड़ा ज़िले में स्थित एक राष्ट्रीय उद्यान है। यह 145 वर्ग किमी (56 वर्ग मील) पर फैला हुआ है। इसे 16 सितम्बर 1998 को सन् 1975 में निर्धारित एक केन्द्रीय क्षेत्र को लेकर नामांकित करा गया और 19 अगस्त 2002 को इसे रामसर स्थल का दर्जा मिल गया। ओड़िशा में चिल्का झील के बाद यह दूसरा रामसर स्थल है। यह राष्ट्रीय उद्यान भीतरकनिका वन्य अभयारणय (Bhitarkanika Wildlife Sanctuary) से घिरा हुआ है जो स्वयं एक 672 वर्ग किमी (259 वर्ग मील) के क्षेत्रफल पर विस्तारित है। पूर्व में गहीरमथा बालूतट और समुद्री अभयारण्य है, जो इसके दलदल और मैन्ग्रोव से ढके क्षेत्र को बंगाल की खाड़ी से अलग करता है। ब्राह्मणी, बैतरणी, धामरा और पाठशाला नदियाँ राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य को जल पहुँचाती हैं। यहाँ कई मैन्ग्रोव जातियाँ हैं और यहाँ का भीतरकनिका मैन्ग्रोव पारिक्षेत्र भारत का दूसरा सबसे बड़ा मैन्ग्रोव पारिक्षेत्र है। राष्ट्रीय उद्यान में खारे पानी के मगरमच्छ, भारतीय अजगर, नाग, काला बाज़ा (आइबिस पक्षी), डार्टर (पनकौआ) और कई अन्य प्राणी व वनस्पति जातियाँ पाई जाती हैं।


जनजातीय अनुसंधान संस्थान (Tribal Museam Bhuneshwar)

संग्रहालय , जनजातीय कला और कलाकृतियों का संग्रहालय , अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान के परिसर के अंदर भुवनेश्वर , ओडिशा में एक संग्रहालय है । यह लोकप्रिय रूप से जनजातीय संग्रहालय के रूप में जाना जाता है और वैचारिक रूप से इसे मानव संग्रहालय के रूप में लेबल किया गया है । [१] [२] इसमें आदिवासी कारीगरों द्वारा बनाए गए जीवन-आकार के प्रामाणिक आदिवासी आवास हैं, जो राज्य की आदिवासी विरासत का दृश्य प्रस्तुत करते हैं। [३] इसमें ऐसे खंड हैं जो आदिवासी कलाकृतियों और वस्तुओं को प्रदर्शित करते हैं, जो ओडिशा के आदिवासियों के अच्छी तरह से शोध किए गए, प्रलेखित सांस्कृतिक जीवन पर केंद्रित हैं। इसका नेतृत्व एक निदेशक करता है, जो एक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के पद पर होता है, और प्रशासनिक नियंत्रण एसटी, एससी, अल्पसंख्यक और पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग, ओडिशा सरकार के हाथों में होता है।

 


धौलिगिरि हिल्स ( Dhauligiri ) 

 भुवनेश्वर (भारत) से 8 किमी दूर, दया नदी के किनारे पर स्थित है। इसके आसपास विशाल खुली जगह के साथ एक पहाड़ी है , और पहाड़ी के शिखर पर एक बड़े चट्टान में अशोक के शिलालेख उत्कीर्ण है। धौली पहाड़ी को कलिंग युद्ध क्षेत्र माना जाता है।

यहां पाया गया चट्टान शिलालेखों नंबर I-X, XIV में दो ​​अलग-अलग कलिंग शिलालेखों शामिल हैं। कलिंग फतवे छठी में उन्होंने, पूरी दुनिया के कल्याण के लिए अपनी चिंता व्यक्त की है। शिलालेखों से ऊपर चट्टानों को काटकर जो हाथी बना है, वो ओडिशा के पूराने बौद्ध मूर्तियों मे से एक है। 

                                         

 

सिमलीपाल रासिमष्ट्रीय उद्यान (Simlipal National Park)

भारत के ओडीशा राज्य के मयूरभंज ज़िले में स्थित एक राष्ट्रीय उद्यान है तथा एक हाथी अभयारण्य है। इस उद्यान का नाम सेमल या लाल कपास के पेड़ों की वजह से पड़ा है जो यहाँ बहुतायत में पाये जाते हैं। यह पार्क 845.70 वर्ग किलोमीटर (326.53 वर्ग मील) के क्षेत्र में फैला हुआ है और इसमें जोरांडा और बरेहीपानी जैसे खूबसूरत झरने हैं। इस उद्यान में 99 बाघ, 432 हाथियों के अलावा गौर तथा चौसिंगे भी वास करते हैं। मयूरभंज राज्य के पूर्ववर्ती शासकों का यह शिकार स्थल प्रोजेक्ट टाइगर के अन्तर्गत शामिल किया गया है। 1956 में इसका चयन आधिकारिक रूप से टाइगर रिजर्व के लिए किया गया था। बारीपदा से 60 किलोमीटर दूर स्थित इसको वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया जो 2277.07 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। घने जंगलों, झरनों और पहाड़ियों से समृद्ध इस पार्क में विविध वन्यजीवों को नजदीक से देखा जा सकता है। बाघ, हिरन, हाथी और अन्य बहुत से जीव इस पार्क में मूलत: पाए जाते हैं।

              


चिल्का झील में किये गए जलपक्षी स्थिति सर्वेक्षण-2022 के अनुसार, लगभग 11 लाख जलपक्षी और आर्द्रभूमि पर निर्भर अन्य प्रजातियाँ इस झील की तरफ आईं।

चिल्का झील भारतीय उपमहाद्वीप में स्थित सबसे बड़ी खारे पानी की झील और शीत ऋतु के दौरान पक्षियों के आगमन हेतु सबसे बड़ा स्थान है।

चिल्का में प्रमुख आकर्षण इरावदी डॉलफिन (Irrawaddy Dolphins) हैं जिन्हें अक्सर सातपाड़ा द्वीप के पास देखा जाता है।

कालिजई मंदिर- यह मंदिर चिल्का झील में एक द्वीप पर स्थित है।

भारत कई प्रवासी जानवरों और पक्षियों का अस्थायी निवास स्थान है।

इनमें अमूर फाल्कन्स (Amur Falcons), बार-हेडेड गीज़ (Bar-Headed Geese), ब्लैक-नेक्ड क्रेन (Black-Necked Cranes), मरीन टर्टल (Marine Turtles), डूगोंग (Dugongs), हंपबैक व्हेल (Humpback Whales) आदि शामिल हैं।

भारत ने मध्य एशियाई फ्लाईवे (Central Asian Flyway) के तहत प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण हेतु राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan) भी शुरू की है क्योंकि भारत प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर अभिसमय (Convention on Migratory Species-CMS) का एक पक्षकार है

              


नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क (Nandankanan Zoological Park)

 

इस पार्क की विशेषताएं

§  सफेद बाघ और मेलेनिस्टिक टाइगर की ब्रीडिंग वाला दुनिया का पहला चिड़ियाघर।

§  व्हाइट टाइगर बंगाल टाइगर का एक दुर्लभ रूप है जिसमें एक अद्वितीय (अवशिष्ट) जीन होता है जो इसे सफेद रंग प्रदान करता है। सफेद बाघ, बाघ की कोई उप-विशिष्ट प्रजाति नहीं होती है। दो बंगाल टाइगर, जिनमें एक अवशिष्ट जीन होता है (वैसा जीन, जो इनकी त्वचा के रंग को प्रभावित करता है), के अंतर्संबंध से सफेद बाघ का जनम होता है।

§  मेलेनिस्टिक टाइगर काला धारीदार होता है, इसे यह रंग इसके आनुवंशिक कारणों से मिलता है। शरीर में मेलेनिन वर्णक के विकास के कारण इनके शरीर पर काली धारियाँ बन जाती है। मेलेनिस्टिक टाइगर दुर्लभ प्रजाति है।

§  दुनिया में भारतीय पांगोलिन का एकमात्र संरक्षित प्रजनन केंद्र।

§  यह भारत का एकमात्र जूलॉजिकल पार्क है जो वाज़ा (World Association of Zoos and Aquarium - WAZA) का संस्थागत सदस्य बना है।

§  वर्ष 1980 में विश्व में पहली बार नंदानकानन जूलॉजिकल पार्क में घडियालों का संरक्षित प्रजनन कराया गया।

§  यह भारत का पहला चिड़ियाघर है, जहाँ लुप्तप्राय रटेल का संरक्षित प्रजनन हुआ।

 


लिंगराज मंदिर भारत के ओडिशा प्रांत की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित है। यह भुवनेश्वर का मुख्य मन्दिर है तथा इस नगर के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। यह भगवान त्रिभुवनेश्वर (शिव) को समर्पित है। इसे ययाति केशरी ने 11वीं शताब्दी में बनवाया था। यद्यपि इस मंदिर का वर्तमान स्वरूप 12वीं शताब्दी में बना, किंतु इसके कुछ हिस्से 1400 वर्ष से भी अधिक पुराने हैं। इस मंदिर का वर्णन छठी शताब्दी के लेखों में भी आता है।

वहाँ की यह मान्यता है की धार्मिक कथा है कि 'लिट्टी' तथा 'वसा' नाम के दो भयंकर राक्षसों का वध देवी पार्वती ने यहीं पर किया था। संग्राम के बाद उन्हें प्यास लगी, तो शिवजी ने कूप बनाकर सभी पवित्र नदियों को योगदान के लिए बुलाया। यहीं पर बिन्दुसागर सरोवर है तथा उसके निकट ही लिंगराज का विशालकाय मन्दिर है। सैकड़ों वर्षों से भुवनेश्वर यहीं पूर्वोत्तर भारत में शैवसम्प्रदाय का मुख्य केन्द्र रहा है। कहते हैं कि मध्ययुग में यहाँ सात हजार से अधिक मन्दिर और पूजास्थल थे, जिनमें से अब लगभग पाँच सौ ही शेष बचे हैं।

 

           

हीराकुंड बांध के बाड़े में

  • हीराकुंड बांध दुनिया के सबसे लंबे बांधों में से एक है, जो ओडिशा के मुख्य शहर संबलपुर से 15 किमी की दूरी पर स्थित है। 
  • यह दुनिया का सबसे लंबा मिट्टी का बांध है जो लगभग 16 मील और लंबाई लगभग 26 किमी है। 
  • 1000 करोड़ रुपये की लागत से महानदी नदी पर निर्मित, हीराकुंड बांध परियोजना पूरे देश में अपनी तरह की एक परियोजना है। भारत की आजादी के बाद इसे पहली प्रमुख बहुउपयोगी नदी घाटी परियोजनाओं में से एक कहा जाता है।
  • वर्ष 1937 में महानदी नदी में आई विनाशकारी बाढ़ से पहलेसर एम. विश्वेश्वरैया ने महानदी नदी के डेल्टा क्षेत्र में इन बाढ़ों को रोकने के लिए एक उचित समाधान के साथ एक विस्तृत जांच का प्रस्ताव रखा।
  • उनके निष्कर्षों के अनुसार तब महानदी को न केवल नियंत्रित करने के लिए बल्कि विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए इसका उपयोग करने के लिए इसकी क्षमता को समझने और विकसित करने का निर्णय लिया गया।
  • परियोजना का काम तब 'केंद्रीय जलमार्ग, नेविगेशन और सिंचाई आयोग' द्वारा किया गया था।
  • जून 1947 में, जब पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के प्रधान मंत्री थे, तब एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट भारत सरकार को सौंपी गई थी, जिन्होंने 12 अप्रैल 1948 को कंक्रीट का पहला बैच रखा था।
  • 1953 में हीराकुंड बांध का निर्माण कार्य पूरा हुआ और 13 जनवरी 1957 को जवाहरलाल नेहरू ने ही इसका उद्घाटन किया। 1956 में बिजली उत्पादन के साथ-साथ कृषि सिंचाई की शुरुआत की गई, जिसने 1966 में पूरी क्षमता हासिल कर ली।

 


          

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