1) भोरमदेव मंदिर, कबीरधाम (Bhoramdew Temple, Kabirdham)
भोरमदेव छत्तीसगढ़ के कबीरधाम ज़िले में कवर्धा से 18 कि.मी. दूर तथा रायपुर से 125 कि.मी. दूर चौरागाँव में एक हजार वर्ष पुराना मंदिर है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर कृत्रिमतापूर्वक पर्वत शृंखला के बीच स्थित है, यह लगभग 7 से 11 वीं शताब्दी तक की अवधि में बनाया गया था। यहाँ मंदिर में खजुराहो मंदिर की झलक दिखाई देती है, इसलिए इस मंदिर को “छत्तीसगढ़ का खजुराहो” भी कहा जाता है।
मंदिर का मुख पूर्व की ओर है। मंदिर नागर शैली का एक सुन्दर उदाहरण है। मंदिर में तीन ओर से प्रवेश किया जा सकता है। मंदिर एक पाँच फुट ऊंचे चबुतरे पर बनाया गया है। तीनों प्रवेश द्वारों से सीधे मंदिर के मंडप में प्रवेश किया जा सकता है। मंडप की लंबाई 60 फुट है और चौड़ाई 40 फुट है। मंडप के बीच में 4 खंबे हैं तथा किनारे की ओर 12 खम्बे हैं, जिन्होंने मंडप की छत को संभाल रखा है। सभी खंबे बहुत ही सुंदर एवं कलात्मक हैं। प्रत्येक खंबे पर कीचन बना हुआ है, जो कि छत का भार संभाले हुए है।
2) केंदई जलप्रपात, कोरबा (Kendai Waterfall, Korba)
कोरबा शहर से करीब 85 किलोमीटर की दूरी पर बिलासपुर-अंबिकापुर स्टेट हाईवे पर केंदई वॉटरफॉल स्थित है।
75 फीट की ऊंचाई से गिरते इस वॉटरफॉल की खूबसूरती मानसून के दिनों में बढ़ जाती है। यहां ऊंचाई से गिरते पानी की फुहारों से इंद्रधनुष सा नाजारा बनता है, जो यहां आने वालों के लिए एक सरप्राइज के जैसा है। गिरते पानी की आवाज कुछ दूर से ही सुनाई देने लगती है। वॉटरफॉल के ऊपरी हिस्से में एक बड़ा चट्टान है जो पानी की धारा को दो अलग-अलग भागों में बांट देता है, जिससे जलप्रपात दो हिस्सों में बंटकर नीचे की ओर गिरता है। वॉटरफॉल के आस-पास भरपूर ग्रीनरी है। कोरबा जिले में बेस्ट पिकनिक स्पॉट की बात करें तो उनमें एक नाम केंदई वॉटरफॉल का भी आता है। केंदई वॉटरफॉल का पानी आगे जाकर बांगो रिजर्ववायर में मिलता है।
वॉटरफॉल के आस-पास प्राकृति की खूबसूरती भरपूर है। जंगल के साथ साथ यहां पर आपको हरे-भरे सुंदर पहाड़ भी देखने को मिलेंगे। पास ही केंदई गांव है, गांव के नाम पर इस वॉटरफॉल का नाम केंदई पड़ा है। यहां पर कभी कभी जंगली जानवर भी देखने को मिलते हैं। सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए प्रशासन द्वारा यहां फेंसिंग भी की गई है। यहां परिवार या दोस्तों के साथ कैंपिंग की सुविधा भी है। वॉटरफॉल के पास ही स्वामी सदानंद का आश्रम भी है।
बारिश के दिनों में अन्य वॉटरफॉल की तरह यहां भी फिसलन ज्यादा हो जाती है। ऐसे में वॉटरफॉल के ऊपरी हिस्से में जाकर वहां से नीचे की ओर झांकना खतरनाक हो सकता है। ऊपरी हस्से में फेंसिंग के पार जाकर सेल्फी या फोटो लेने की कोशिश ना करें। यह जानलेवा हो सकता है। वन विभाग के द्वारा यहां पर पर्यटकों की सुरक्षा के लिए व्यवस्था की गई है पर वह पर्याप्त नहीं है। ऐसे में पर्यटक अपनी सुरक्षा का ध्यान खुद रखें। वॉटरफॉल के निचले हिस्से में अकसर पर्यटक नहाने के लिए पानी में उतर जाते हैं। क्योंकि पानी बहुत ऊपर से और तेजी से नीचे की ओर गिरता है ऐसे में उस जगह पर गहराई ज्यादा हो जाती है। आने वाले पर्यटकों को इसका अंदाजा नहीं होता। केंदई वॉटरफॉल के निचले हिस्से में कुछ हादसे हुए हैं जहां नहाने के दौरान कुछ लोगों की मौत हो गई है। हाल ही में कटघोरा निवासी दो सगे भाइयों की गहराई में डूबने से मौत हो गई थी।
इस वॉटरफॉल को देखने का बेस्ट समय अगस्त से फरवरी के बीच का है, इस समय वॉटरफॉल में पानी रहता है। गर्मी के दिनों में वॉटरफॉल में पानी बहुत कम हो जाता है। दोस्त या परिवार के साथ आप इस जगह पर पिकनिक या घूमने का प्लाने कर सकते हैं।
3) झुमका बांध, कोरिया (Jhumka Dam, Korea)
कोरिया जिले के झुमका बांध में पर्यटक शिकारा बोट के साथ ही अब हाउसबोट या कहें तो क्रूज की सुविधा का भी आनंद ले सकेंगे। झुमका को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने के लिए जिला प्रशासन और पर्यटन विभाग ने योजना तैयार की है। सीएम विष्णुदेव साय की घोषणा के बाद यहां पर्यटकों के लिए सुविधाएं जुटाने को लेकर प्रशासन ने कवायद शुरू कर दी है।
हैदराबाद के कारिगर कर रहे हाउसबोट निर्माण : सीएम विष्णुदेव साय ने बीते 1 फरवरी को झुमका बांध में 5 शिकारा बोट की शुरूआत की थी। इस दौरान सीएम ने झुमका और सोनहत के घुनघुट्टा जलाशय को पर्यटक क्षेत्र बनाने की घोषणा की थी। जिसके बाद कलेक्टर विनय कुमार लंगेह की विशेष पहल पर झुमका में पर्यटन गतिविधियों को बढ़ाने के लिए यहां क्रूज और हाउस बोट लाई गई है। झुमका तट पर हाउस बोट का निर्माण हैदराबाद के कारिगर कर रहे हैं। बोट बना रहे कारिगरों ने अगले पिकनिक सीजन में बोट सर्विस शुरु होने की उम्मीद जताई है।
"करीब डेढ़ से दो महीने में निर्माण पूरा हो जाएगा। इसके बाद बोट को पानी में उतारकर ट्रायल लेंगे। अगले पिकनिक सीजन से बोट पर्यटकों के लिए शुरू हो जाएगी।" - आसिफ खान, कारीगर, हैदराबाद।
दिन में 3 बार झुमका का सैर कराएगी बोट : कलेक्टर कोरिया विनय कुमार लंगेह ने कहा, कोरिया जिले के झुमका को मुख्यमंत्री ने पर्यटन क्षेत्र बनाने की घोषणा है। इसी उद्देश्य के साथ हाउस बोट लाया गया है। बोट दिन में 3 बार झुमका का सैर कराएगी. बोट का ढांचा हैदराबाद से आया है, जिसे कारिगर असेंबल कर रहे हैं।"
"डेढ़ से दो महीने में बोट तैयार होगी। बोट के ऊपर रेस्टोरेंट, दो कमरे, हॉल की सुविधा मिलेगी।" - विनय कुमार लंगेह, कलेक्टर, कोरिया।
2 कमरे और एक हॉल की होगी सुविधा : हाउस बोट में 2 कमरे और एक हॉल की सुविधा रहेगी। इसमें 50 से अधिक लोग एक बार में झुमका बांध के रोमांचक सफर का आनंद उठा सकेंगे। बोट के ऊपरी मंजिल पर रेस्टोरेंट की सुविधा मिलेगी। लोग झुमका के गहरे पानी के बीच लजीज व्यंजनों का भी लुत्फ उठा सकेंगे।
4) दल्हा पहाड़ (Dalha Mountain)
शहर के पास एक ऐसा पहाड़ है जो की कई रहस्यों से भरा हुआ है। ऐसी कई चीजें हैं जो इस पहाड़ को खास और रहस्यमई बनाती हैं। हम बात कर रहे हैं शहर से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित दल्हा पहाड़ की। वैसे तो यह जगह प्रकृति प्रेमियों और एडवेंचर लवर्स को खूब भाती है, लेकिन इसके अलावा ऐसी कई चीज़ें हैं जो इस पर्वत और इस जगह को खास बनाती हैं।
सीपत रोड
पर स्थित दल्हा पहाड़ कई तरह से रहस्यमयी है। नागपंचमी पर यहां खास पूजा अर्चना की जाती है। हजारों लाखों की संख्या में लोग यहां पूजा अर्चना करने
आते हैं और दलहा पहाड़ की चढ़ाई करते हैं। ऐसा
बताया जाता ही कि पहाड़ के ऊपर एक तालाब है जिसका पानी चमत्कारी है। इस तालाब के पानी के जल से स्नान करने से शरीर के सारे
रोग दूर हो जाते हैं। यही वजह
है की नागपंचमी पर पहाड़ की चढ़ाई कर पूजा पाठ कर लोग इस तालाब के जल से स्नान
करते हैं।
5) कैलाश गुफा, जशपुर (Kailash Caves, Jashpur)
"कैलाश गुफा" छत्तीसगढ़ के उतरी भाग में स्थित जशपुर जिले की तहसील से लगभग 29 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित एक गुफा है जिसे [कैलाश गुफा] के नाम से जाना जाता है| कैलाश गुफा पहाड़ी पर स्थित है। यहाँ घनघोर जंगल है इस जंगल में बहुत बन्दर है लेकिन ये इंसान को कोई नुक्सान नही पहुचाते हैं। कैलाश गुफा प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। कैलाश गुफा आने जाने का मार्ग आजकल काफी हद तक अच्छा हो गया है, कैलाश गुफा पर हर साल शिवरात्री में मेला लगता है जो दो तीन दिनों तक चलता है। इसे छोटा बाबा धाम भी बोला जाता है। यहाँ सावन के पूरे महीने मेला लगा रहता है और दूर-दूर से श्रद्धालजन भगवान शिव को जल चढाने कांवड़ लेकर पैदल यात्रा कर के आते है। कैलाश गुफा के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए आप माय बगीचा डॉट इन्फो वेबसाइट पर जा कर पूरी जानकारी ले सकते है।
6) कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान (Kanger Valley National Park)
कांगेर घाटी राष्ट्रीयउद्यान का नाम कांगेर नदी से निकला
है, जो इसकी लंबाई में बहती है। कांगेर घाटी लगभग 200 वर्ग किलोमीटर में फैला है |
कांगेर घाटी ने 1982 में एक राष्ट्रीय उद्यान की स्थिति प्राप्त की। ऊँचे
पहाड़ , गहरी घाटियाँ, विशाल
पेड़ और मौसमी जंगली फूलों एवं वन्यजीवन की विभिन्न प्रजातियों के लिए यह अनुकूल
जगह है । कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान एक मिश्रित नम पर्णपाती प्रकार के वनों का
एक विशिष्ट मिश्रण है जिसमे साल ,सागौन , टीक और बांस के पेड़ बहुताइत में है। यहाँ की सबसे
लोकप्रिय प्रजातियां जो अपनी मानव आवाज के साथ सभी को मंत्रमुग्ध करती हैं वह
बस्तर मैना है। राज्य पक्षी, बस्तर
मैना, एक प्रकार का हिल माइन (ग्रुकुला धर्मियोसा) है, जो मानव आवाज का अनुकरण करने में सक्षम है। जंगल दोनों
प्रवासी और निवासी पक्षियों का घर है।
वन्यजीवन और पौधों के अलावा, यह राष्ट्रीय उद्यान तीन असाधारण गुफाओं का घर है- कुटुम्बसर, कैलाश और दंडक-स्टेलेग्माइट्स और स्टैलेक्टसाइट्स के आश्चर्यजनक भूगर्भीय संरचनाओं के लिए प्रसिद्ध है। राष्ट्रीय उद्यान ड्रिपस्टोन और फ्लोस्टोन के साथ भूमिगत चूना पत्थर की गुफाओं की उपस्थिति के लिए जाना जाता है। स्टेलेग्माइट्स और स्टैलेक्टसाइट्स का गठन अभी भी बढ़ रहे हैं। राष्ट्रीय उद्यान में गुफा, वन्यजीवन की विभिन्न प्रजातियों के लिए आश्रय प्रदान करते हैं। राष्ट्रीय उद्यान के पूर्वी हिस्से में स्थित भैंसाधार में रेतीले तट देखे जाते हैं जहां मगरमच्छ (क्रोकोड्लस पालस्ट्रिस) इसका उपयोग मूलभूत उद्देश्यों के लिए करते हैं।
तीरथगढ़ झरना कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में स्थित है| इसके साथ ही साथ केंजरधार और भैंसाधार मगरमच्छ पार्क के लिए लोकप्रिय पर्यटक स्थल हैं। पार्क की प्राकृतिक सुंदरता का पता लगाने के लिए जिप्सी सफारी पर्यटकों के लिए उपलब्ध है।
7) तुरतुरिया (Turturiya)
तुरतुरिया एक प्राकृतिक एवं धार्मिक स्थल रायपुर जिला से 84 किमी एवं बलौदाबाजार जिला से 29 किमी दूर कसडोल तहसील से 12 और सिरपुर से 23 किमी की दूरी पर स्थित है जिसे तुरतुरिया के नाम से जाना जाता है। उक्त स्थल को सुरसुरी गंगा के नाम से भी जाना जाता है। यह स्थल प्राकृतिक दृश्यों से भरा हुआ एक मनोरम स्थान है जो कि पहाड़ियो से घिरा हुआ है। इसके समीप ही बारनवापारा अभ्यारण भी स्थित है। तुरतुरिया बहरिया नामक गांव के समीप बलभद्री नाले पर स्थित है। जनश्रुति है कि त्रेतायुग में महर्षि वाल्मीकि का आश्रम यही पर था और लवकुश की यही जन्मस्थली थी।
इस स्थल का नाम तुरतुरिया पड़ने का कारण यह है कि बलभद्री नाले
का जलप्रवाह चट्टानों के माध्यम से होकर निकलता है तो उसमें से उठने वाले बुलबुलों
के कारण तुरतुर की ध्वनि निकलती है। जिसके कारण उसे तुरतुरिया नाम दिया गया है।
इसका जलप्रवाह एक लम्बी संकरी सुरंग से होता हुआ आगे जाकर एक जलकुंड में गिरता है
जिसका निर्माण प्राचीन ईटों से हुआ है। जिस स्थान पर कुंड में यह जल गिरता है वहां
पर एक गाय का मोख बना दिया गया है जिसके कारण जल उसके मुख से गिरता हुआ दृष्टिगोचर
होता है। गोमुख के दोनों ओर दो प्राचीन प्रस्तर की प्रतिमाए स्थापित हैं जो कि
विष्णु जी की हैं इनमें से एक प्रतिमा खडी हुई स्थिति में है तथा दूसरी प्रतिमा
में विष्णुजी को शेषनाग पर बैठे हुए दिखाया गया है। कुंड के समीप ही दो वीरों की
प्राचीन पाषाण प्रतिमाए बनी हुई हैं जिनमें क्रमश: एक वीर एक सिंह को तलवार से मारते
हुए प्रदर्शित किया गया है तथा दूसरी प्रतिमा में एक अन्य वीर को एक जानवर की
गर्दन मरोड़ते हुए दिखाया गया है। इस स्थान पर शिवलिंग काफी संख्या में पाए गए हैं
इसके अतिरिक्त प्राचीन पाषाण स्तंभ भी काफी मात्रा में बिखरे पड़े हैं जिनमें
कलात्मक खुदाई किया गया है। इसके अतिरिक्त कुछ शिलालेख भी यहां स्थापित हैं। कुछ
प्राचीन बुध्द की प्रतिमाएं भी यहां स्थापित हैं। कुछ भग्न मंदिरों के अवशेष भी
मिलते हैं। इस स्थल पर बौध्द, वैष्णव तथा शैव धर्म से संबंधित मूर्तियों का पाया जाना भी
इस तथ्य को बल देता है कि यहां कभी इन तीनों संप्रदायो की मिलीजुली संस्कृति रही
होगी। ऎसा माना जाता है कि यहां बौध्द विहार थे जिनमे बौध्द भिक्षुणियों का निवास
था। सिरपुर के समीप होने के कारण इस बात को अधिक बल मिलता है कि यह स्थल कभी बौध्द
संस्कृति का केन्द्र रहा होगा। यहां से प्राप्त शिलालेखों की लिपि से ऎसा अनुमान
लगाया गया है कि यहां से प्राप्त प्रतिमाओं का समय 8-9 वीं शताब्दी है। आज भी यहां स्त्री
पुजारिनों की नियुक्ति होती है जो कि एक प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा है। पूष
माह में यहां तीन दिवसीय मेला लगता है तथा बड़ी संख्या में श्रध्दालु यहां आते हैं।
धार्मिक एवं पुरातात्विक स्थल होने के साथ-साथ अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण भी
यह स्थल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
8) कांकेर महल, कांकेर (Kanker Palace, Kanker)
कांकेर महल छत्तीसगढ़ क्षेत्र के ऐतिहासिक और राजसी अतीत को दर्शाता है। यहाँ वे सभी विवरण दिए गए हैं जो आपको कांकेर महल देखने के लिए मजबूर करेंगे।
खूबसूरत और अनोखा कांकेर महल भारत के छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में स्थित है। इसे ब्रिटिश काल में बनाया गया था। इस शानदार जगह पर आपको कई ऐसे आकर्षण या बिंदु देखने को मिलेंगे जो आपके दिन को खास बना देंगे। महल में आकर्षक आंतरिक और बाहरी डिज़ाइन हैं जो सभी हिस्सों से पर्यटकों को उचित रूप से आकर्षित करते हैं। महल के चारों ओर कई खूबसूरत परिदृश्य मौजूद हैं जो आपको अपने दोस्तों और परिवार के साथ एक खूबसूरत दर्शनीय स्थल का अनुभव देंगे।
रॉयल पैलेस कांकेर की सुखद यात्रा के लिए अक्टूबर से मार्च तक के महीने सबसे अच्छे माने जाते हैं।
रॉयल पैलेस कांकेर का अक्षांश और देशांतर अलग-अलग है। कांकेर पैलेस का अक्षांश 20.270000 है, और देशांतर 81.489998 है।
इस रॉयल पैलेस कांकेर में आपको मुस्लिम और हिंदू दोनों समुदाय देखने को मिलेंगे। इसमें खूबसूरत हिंदू मंदिर और मुस्लिम मस्जिदें हैं।
छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्य राजमार्गों के निकट, कांकेर के आसपास के क्षेत्र में कई खूबसूरत वस्तुओं के साथ पारंपरिक बाजार शामिल हैं।
कांकेर के आस-पास कई खूबसूरत जगहें हैं। जब आप रॉयल पैलेस कांकेर जाएँ, तो आपको अन्य महलों को भी देखना चाहिए जो आपको यात्रा के दौरान कुछ अतिरिक्त रोमांच प्रदान करेंगे। कांकेर आदिवासी संस्कृति और जंगलों से घिरा हुआ है। यह अपने समृद्ध आदिवासी इतिहास और परंपराओं के लिए भी प्रसिद्ध है। आपको यहाँ कलात्मक और शिल्पकला हस्तशिल्प जैसी कई अद्भुत चीज़ों को देखने का मौका मिलेगा।
कांकेर के आस-पास कई ऐतिहासिक स्मारक और कई प्राकृतिक आकर्षण भी हैं जो शहर को आकर्षक लुक देते हैं। कांकेर के आस-पास के इलाकों में चर्रे मर्रे झरना, माँ शिवानी मंदिर, गड़िया पर्वत और मलंजखंड झरना शामिल हैं। ये सभी खूबसूरत जगहें हैं जिनमें कई अनोखी चीजें शामिल हैं।
चार्रे-मरे झरना जोगीधारा नदी से आता है और इसमें कई खूबसूरत दृश्य हैं।
गड़िया पहाड़ कांकेर शहर की मुख्य राजधानी या क्षेत्र है। इन पहाड़ों में कांकेर के राजाओं की छुपने की गुफा भी है।
माँ शिवानी मंदिर माँ काली और माँ दुर्गा देवी का मंदिर है। मंदिर में दर्शन करने का सबसे सुंदर समय नवरात्रि है। इस समय, कोने-कोने से सभी भक्त माँ शिवानी से आशीर्वाद पाने के लिए मंदिर आते हैं।
कांकेर के आस-पास मलंजखंड झरना भी है क्योंकि यह सबसे अच्छा झरना है जो आपको दूसरी दुनिया में ले जाएगा। इस जगह पर जाने के लिए आपको शहर से 15 किमी दूर जाना होगा।
ये कांकेर के खूबसूरत परिवेश हैं, जिनमें रॉयल पैलेस कांकेर भी शामिल है। ये जगहें सबसे अच्छी जगहें हैं जहाँ कोई कांकेर शहर में आने पर जा सकता है।
9) चित्रकोट जलप्रपात, बस्तर (Chitrakote Waterfall, Bastar)
चित्रकोट जलप्रपात भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर ज़िले में इन्द्रावती नदी पर स्थित एक सुंदर जलप्रपात है। इस जल प्रपात की ऊँचाई 90 फीट है।इस जलप्रपात की विशेषता यह है कि वर्षा के दिनों में यह रक्त लालिमा लिए हुए होता है, तो गर्मियों की चाँदनी रात में यह बिल्कुल सफ़ेद दिखाई देता है।
जगदलपुर से 40 कि.मी. और रायपुर से 273 कि.मी. की दूरी पर स्थित यह जलप्रपात छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा, सबसे चौड़ा और सबसे ज्यादा जल की मात्रा प्रवाहित करने वाला जलप्रपात है। यह बस्तर संभाग का सबसे प्रमुख जलप्रपात माना जाता है। जगदलपुर से समीप होने के कारण यह एक प्रमुख पिकनिक स्पाट के रूप में भी प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका है। अपने घोडे की नाल समान मुख के कारण इस जाल प्रपात को भारत का निआग्रा भी कहा जाता है। चित्रकूट जलप्रपात बहुत ख़ूबसूरत हैं और पर्यटकों को बहुत पसंद आता है। सधन वृक्षों एवं विंध्य पर्वतमालाओं के मध्य स्थित इस जल प्रपात से गिरने वाली विशाल जलराशि पर्यटकों का मन मोह लेती है।
‘भारतीय नियाग्रा’ के नाम से प्रसिद्ध चित्रकोट प्रपात वैसे तो प्रत्येक मौसम में दर्शनीय है, परंतु वर्षा ऋतु में इसे देखना अधिक रोमांचकारी अनुभव होता है। वर्षा में ऊंचाई से विशाल जलराशि की गर्जना रोमांच और सिहरन पैदा कर देती है।वर्षा ऋतु में इन झरनों की ख़ूबसूरती अत्यधिक बढ़ जाती है।जुलाई-अक्टूबर का समय पर्यटकों के यहाँ आने के लिए उचित है।चित्रकोट जलप्रपात के आसपास घने वन विराजमान हैं, जो कि उसकी प्राकृतिक सौंदर्यता को और बढ़ा देती है।रात में इस जगह को पूरा रोशनी के साथ प्रबुद्ध किया गया है। यहाँ के झरने से गिरते पानी के सौंदर्य को पर्यटक रोशनी के साथ देख सकते हैं।अलग-अलग अवसरों पर इस जलप्रपात से कम से कम तीन और अधिकतम सात धाराएँ गिरती हैं।
10) मैनपाट, सरगुजा (Mainpat, Sarguja)
मैनपाट भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के उत्तरी भाग में सरगुजा जिले में एक हिल स्टेशन और छोटा सा गाँव है । यह अंबिकापुर के संभागीय मुख्यालय से सड़क मार्ग से लगभग 55 किलोमीटर (34 मील) दूर स्थित है । यह हिल स्टेशन अंबिकापुर से 50 किलोमीटर दक्षिण में, कोरबा से 160 किलोमीटर उत्तर पूर्व में और राज्य की राजधानी रायपुर से 360 किलोमीटर उत्तर पूर्व में है ।
यह हिल स्टेशन उल्टा पानी या बिसर पानी के लिए प्रसिद्ध है जो गुरुत्वाकर्षण को धता बताते हुए ऊपर की ओर बहता है।
मैनपाट को " छत्तीसगढ़ का शिमला/स्विस " के नाम से जाना जाता है और यह एक लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण है। यह कई तिब्बती धार्मिक निर्वासितों का घर भी है जो बुद्ध को समर्पित एक मंदिर में पूजा करते हैं और डिजाइनर चटाई के साथ-साथ ऊनी कपड़े भी बनाते हैं।
हाल ही में, गांव में यात्रियों के लिए सड़कें और विश्राम गृह जैसे बुनियादी ढांचे का विकास हुआ है। यहाँ आप आसानी से कई साहसिक खेल जैसे ट्रेकिंग, ज़ोरबिंग बॉल, रैपलिंग आदि पा सकते हैं। खेत पीले और सफेद फसलों से ढके हुए हैं। बिसार पानी नामक गांव में एक जगह है (मैनपाट से 5 किलोमीटर पहले अंबिकापुर से मैनपाट जाने वाली सड़क के दाईं ओर) जहां पानी ऊपर की ओर बहता है। ग्रामीणों ने पानी के लिए एक नहर बनाई है और पानी अपने आप 30 फीट ऊपर की ओर बहता है। कोई उपकरण और कोई वैज्ञानिक व्याख्या नहीं मिल सकी। हिल स्टेशन में टाइगर पॉइंट झरना, फिश पॉइंट झरना, घाघी झरना, ज़लज़ली (उछलती हुई भूमि), परपटिया व्यू पॉइंट और बुद्ध मंदिर हैं।
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